अप्रैल का महीना चल रहा है पूरे देश में तापमान और सियासी पारा दोनों दिन ब दिन बढ़ रहा है राजस्थान एक ऐसा राज्य जो कुख्यात है अपनी प्रचंड गर्मी के लिए फिलवक्त हम बात करेंगे वहां के सियासी पारे की जो की अपने चरम पे है ।
राजस्थान के पश्चिमी में हिस्से में सीमा से सटे हुए जिले हैं बाड़मेर और जैसलमेर जो की एक ही लोकसभा सीट में आते हैं । यहां वो सभी तत्व उपलब्ध हैं जिनके लिए राजस्थान कुख्यात, प्रख्यात है मसलन रेत के धोरे, भीषण गर्मी , राजे रजवाड़े , महल तिवारे, ऊंट, मारवाड़ी पगड़ियां , हुकुम सा की बोली , अमल की मनुहार , पानी की कमी , .. इत्यादि इत्यादि । ये कहानी का एक पहलू है।
दूसरे पहलू के लिए हमको थोड़ा फ्लैशबैक में चलना पड़ेगा , साल था 2019 का जोधपुर के जयनारायण विश्वविधालय में छात्र संघ के चुनाव चल रहे थे बाड़मेर जिले की शिव तहसील का एक राजपूत युवा एबीवीपी से जोर शोर से चुनाव की तैयारी कर रहा था और अपने टिकट को लेके आश्वस्त था लेकिन ऐन वक्त पर उसके साथ खेला हो गया और उसका टिकट कट गया ।
आनन फानन में राजपूतों के 3 नंबर होस्टल में मीटिंग बुलाई गई , उस युवा ने अपने अब तक के राजनीतिक जीवन का सबसे भावनात्मक और ओजस्वी भाषण दिया और वो भाषण उसके जीवन का टर्निंग प्वाइंट बन गया , पूरी दमदारी के साथ चुनाव लडा गया और संगठन की नाक पर हींगुर करते हुए यूनिवर्सिटी के 57 साल के इतिहास में पहली बार निर्दलीय अधक्ष्य बना । यह युवा और कोई नहीं वर्तमान का शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी था । वक्त का पहिया घुमा रविंद्र सिंह तीन साल तक( दो साल कोरोना के शामिल हैं )आक्रमक अंदाज में जमीन पर छात्रों की राजनीति करते रहे ।
2023 का साल आया सूबे में विधानसभा चुनावों की मुनादी हो गई।
रविंद्र सिंह टिकट के लिए अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहा था , उसे टिकट के आश्वासन पर फिर बीजेपी में शामिल किया गया । लेकिन साल 2019 की कहानी फिर से दोहराई गई और उसका टिकट फिर से कट गया , एक बार फिर सबका दल तो दलदल है , अपना दल तो निर्दल है। रविंद्र सिंह ने शिव विधान सभा से निर्दलीय पर्चा भरा और 4790 वोट से कांग्रेस के बागी फतेह खान को चुनाव हराया और दोनो पार्टियों के प्रत्याशी क्रमश तीसरे और चौथे स्थान पर रहे ।
2024 में मुल्क में आम चुनाव हो रहें हैं रविंद्र सिंह ने फिर से निर्दलीय पर्चा दाखिल कर दिया है लेकिन इस बार न उन्होंने टिकट मांगा है न कोई पूर्व घोषणा की लेकिन राजस्थान जो प्रख्यात है मतीरे की राड़ ( लड़ाई) जैसी कहानियों के लिए वैसी ही कुछ हैंडपंप की राङ ( लड़ाई) हो गई । रविंद्र सिंह की अनुसंशा पर काम हैंडपंप अलॉट किए और बीजेपी के हारे हुए प्रत्याशी स्वरूप सिंह खारा के लिए ज्यादा कर दिए ये बात रविंद्र को नागवार गुजरी और ' याचना नहीं अब रण होगा ' टाइप चुनाव का ऐलान कर दिया ।
लेकिन यहां जोश में होश नहीं खोया गया है एक मंझे हुए राजनेता की तरह रविंद्र सिंह ने दोनो पार्टियों के प्रत्याशियों की घोषणा का इंतजार किया और उसके बाद अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं से रायशुमारी करके चुनाव का ऐलान किया ।
चूंकि दोनों पार्टियों ने क्रमश बीजेपी ने अपने सिटिंग एमपी कैलाश चौधरी को तथा कांग्रेस ने हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी से कांग्रेस में आया उम्मेदराम पर भरोसा जताया है दोनों ही नेता जाट समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और दोनो की अपने समुदाय में मजबूत पकड़ है । जाट समुदाय का लगभग 13 फीसदी वोट शेयर है वहीं रविंद्र सिंह राजपूत समुदाय से है जो लगभग 11 फीसदी वोट शेयर रखती है । राजस्थान में पारंपरिक रूप से ये जातियां एक दूसरे के विरोध में वोट करती आई हैं । इसके अलावा यहां 2.70 लाख मुस्लिम , लगभग 6.70 लाख ओबीसी ( नॉन जाट) , 80000 ब्राह्मण हैं । मुस्लिम का झुकाव रविंद्र सिंह की तरफ रह सकता है क्योंकि मुस्लिम रविंद्र सिंह को लोकसभा भेजकर शिव की अपनी पारंपरिक सीट पर दावा करना चाहेंगे । सभी समुदाय के युवाओं ने रविंद्र सिंह खासे चर्चित हैं । मारवाड़ी भाषा के ब्रांड एंबेसेडर हैं मारवाड़ी में ही संवाद करते हैं , अपनी शपथ भी उन्होंने मारवाड़ी में ही ली थी । सोसल मीडिया पर उनकी बड़ी फैन फॉलोइंग है जो इनके प्रचार को धारदार और आक्रमक बनाती है । ये 26 साल का नौजवान बीजेपी को मुश्किल ने डाल सकता है
देखते हैं ऊंट किस करवट बैठता है ।
आदित्य कौशिक
Comments
Post a Comment