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मन्नू भंडारी की पहली कहानी : मैं हार गई

जब कवि सम्मेलन समाप्त हुआ तो सारा हॉल हंसी-कहकहों और तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज रहा था| शायद मैं एक ऐसी थी, जिसका रोम-रोम क्रोध से जल रहा था| उस सम्मेलन की अंतिम कविता थी 'बेटे का भविष्य'| उसका सारांश कुछ इस प्रकार था, एक पिता अपने बेटे के भविष्य का अनुमान लगाने के लिए उसके कमरे में एक अभिनेत्री की तस्वीर, एक शराब की बोतल और एक प्रति गीता की रख देता है और स्वयं छिपकर खड़ा हो जाता है| बेटा आता है और सबसे पहले अभिनेत्री की तस्वीर को उठाता है| उसकी बाछे खिल जाती हैं| बड़ी हसरत से उसे वह सीने से लगाता है, चूमता है और रख देता है| उसके बाद शराब की बोतल से दो-चार घूंट पीता है| थोड़ी देर बाद मुंह पर अत्यंत गंभीरता के भाव लाकर, बगल में गीता दबाए वह बाहर निकलता है| बाप बेटे की यह करतूत देखकर उसके भविष्य की घोषणा करता है, "यह साला तो आजकल का नेता बनेगा!" कवि महोदय ने यह पंक्ति पढ़ी ही थी कि हॉल के एक कोने से दूसरे कोने तक हंसी की लहर दौड़ गई| पर नेता की ऐसी फजीहत देकर मेरे तो तन-बदन में आग लग गई| साथ आए हुए मित्र ने व्यंग्य करते हुए कहा, "क्यों तुम्ह...

दक्षिण कोरिया में हिंदी के विरुद्ध हो रही है साजिश, भारत विभाग में हिंदी की जगह कर दी अंग्रेजी

दक्षिण कोरिया (South Korea) के बुसान यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज(BUFS) में हिंदी के विरूद्ध साज़िश का मामला सामने आया हैl कुछ भारत-विरोधी व्यक्तियों के दबाव में प्रशासन ने अगले सेमेस्टर से भारत-विभाग की भाषा के रूप में हिंदी की जगह अंग्रेजी पढ़ाने का फ़ैसला किया हैl दलील दी गई है कि भारत में काम करने के लिए हिंदी आना जरूरी नहीं हैl BUFS के हिंदी प्रेमी छात्र और शिक्षक, प्रशासन द्वारा अचानक लिए गए इस फ़ैसले से स्तब्ध हैंl छात्रों ने लोकतांत्रिक तरीके से इस फैसले का विरोध करते हुए भारत विभाग के छात्रों के बीच जनमत सर्वेक्षण कराया है जिसमें भाग लेने वाले 102 छात्रों में से 86 अर्थात् 84.3% BUFS के निर्णय के विरोध में हैंl इसे यों कहें कि 84.3% जनमत हिन्दी के पक्ष में हैl लेकिन, भारत-विरोधी हावी हैंl यदि भारत सरकार ने यथाशीघ्र हस्तक्षेप नहीं किया तो भारतीय अस्मिता को भारी नुक़सान होगा और गंभीर दूरगामी परिणाम होंगेl  ग़ौरतलब है कि BUFS के भारत विभाग में पिछले सैंतीस सालों से हिंदी की पढ़ाई हो रही है और हर साल पैंतीस छात्र हिंदी पढ़ते रहे हैंl BUFS के हिन्दी शिक्षकों ने हिन्दी ...

"बता दूँ क्या..." व्यंग्य-संग्रह का लोकार्पण समारोह मुंबई राजभवन में संपन्न

महाराष्ट्र के राज्यपाल माननीय श्री भगत सिंह कोश्यारी जी ने मंगलवार, 15 दिसंबर 2020 को राजभवन, मुंबई में एक हिंदी व्यंग्य संकलन 'बता दूँ क्या ..' के लोकार्पण समारोह के अवसर पर अपनेे वक्तव्य में हिंदी भाषा को बढ़ावा देने तथा हिंदी को लोकप्रिय बनाने हेतु महाराष्ट्र और गुजरात की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि इन दोनों राज्यों ने हिंदीभाषी राज्यों की तुलना में हिंदी को लोकप्रिय बनाने तथा प्रचार-प्रसार करने में अधिक योगदान दिया है।" इस संबंध में, राज्यपाल ने उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि- दयानंद सरस्वती, महात्मा गांधी, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठनों ने बड़े पैमाने पर देश और दुनिया में हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए सराहनीय कार्य किया है। साहित्य पर किसी का एकाधिकार नहीं होना चाहिए, इस पर माननीय राज्यपाल जी ने कहा कि- "कुछ तारे बादलों में छुपे होते हैं उनकी चमक दुनिया को दिखायी नहीं पड़ती, वैसे ही कुछ साहित्यकार और उनकी रचनाएँ जनमानस तक नहीं पहुँच पातीं, कुछ लोगों के एकाधिकार की वजह से कुछ लोग समाज में दिखाई नहीं दे पाते।...