डॉ. अमिता दुबे, प्रधान संपादक, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, उत्तर प्रदेश द्वारा लिखित 'सृजन को नमन' पुस्तक पर देश के विद्वानों ने की चर्चा
विश्व हिंदी संगठन से समन्वित सहचर हिंदी संगठन, नई दिल्ली (पंजी.) द्वारा हर महीने पुस्तक परिचर्चा कार्यक्रम के तहत डॉ. अमिता दुबे द्वारा लिखित पुस्तक सृजन को नमन पर लाइव ऑनलाइन परिचर्चा हुई, जिसमें देश भर के साहित्यकारों ने जुड़कर विद्वानों को सुना। इस पुस्तक के लेखक डॉ. अमिता दुबे जी ने बताया कि मूलत: वे स्वाभवत: कहानीकार हैं परंतु विद्यावाचस्पति की अध्ययन के दौरान उनकी रुचि आलोचना की ओर प्रवृत्त हुआ। उन्होंने आगे बताया कि किस तरह इस पुस्तक को लिखा। इसमें उन्होंने अपने जीवनानुभवों को भी व्यक्त किया है।
कार्यक्रम में राजस्थान से जुड़ी डॉ.बबीता काजल ने यह पुस्तक में लिखे शोध आलेख हैं । जो शोधार्थियों और साहित्यानुरागी के हेतु अत्यंत उपयोगी होगी । सामाजिक परिवेश अत्यंत महत्वर्पूण होता है जहाँ रचनाकार को लेखन के बीज मिलते हैं। चिट्ठियों की दुनिया में राष्ट्राध्यक्षों के बीच हुए वार्तालाप को कविता के रूप में रचा है जो अपने आप में एक अलग क्षितिज को दिखाता है। पुस्तक में हिंदी प्रचार एवं महत्व को उल्लेखित किया गया, देवनागरी लिपि की विशेषता का उल्लेख ध्वनि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत उपयोगी है ।इस प्रकार सृजन को नमन पुस्तक में सूरदास, प्रेमचंद, पाण्डेय बेचैन शर्मा उग्र, राही मासूम रज़ा सरीखे व्यक्तित्व पर लेखनी चलाई गई है और वक्ता ने इसका पूर्णतः नीर क्षीर विवेचन किया।
दूसरी वक्ता के रूप में डॉ. आशा राठौर , मध्यप्रदेश से बात रखते हुए कहा कि यह पुस्तक एक गुलस्ता जैसा आभास करवाती है इसमें विभिन्न रसों को निबंध के माध्यम से रखा गया है । आपने ने कहा कि मानस का उत्तरकांड निबंध जीवन का सार है उसी प्रकार जिस प्रकार मानस जीवन का सार है। कलम के मजदूर भिक्षु पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कविता में मानव प्रेम, मानवीय मूल्यों, मानवीय धर्म सर्वोपरि है । आगे पुस्तक में हिंदी की क्षमता जो कि राष्ट्रभाषा बनने हेतु उत्कृष्ट भाषा है । शत्रुध्न की चारित्रिक विशेषता पर प्रकाश डाला तथा शिवानंद मिश्र की कविता पर भी आपने श्रोताओं का ध्यान आकृष्ट किया जिसका उल्लेख पुस्तक में किया गया है।असम से डॉ परिस्मिता बरदलै ने बताया कि हिंदी का दायित्वबोध एवं हिंदी की चुनौतियों पर अपना वक्तव्य रखते हुए कहा - हिन्दी और चुनौतियाँ संविधान में राजभाषा के रूप में स्थान पर अंग्रेजी को सहभाषा के रप में दर्जा ,बाद में सहभाषा ही मुख्यभाषा हो गई।
भाषा और संस्कृति को एक कहा है विश्व के अनेक देश में हिन्दी की बढ़ती हुई कदम भारत के अहिन्दी भाषी राष्ट्रीय नेता द्वारा हिन्दी के विकास के लिए कार्य अधिनियम अथवा आदेश से भी आवश्यक है निष्ठा, संकल्प तथा विश्वास कार्यालय में हिन्दी संबंधित कार्य सख्ती से होनी चाहिए
सरकारी कार्यों में अनुवाद का सहारा नहीं ले ।अंग्रेजी में सोचने के बजाय हिन्दी में सोचना चाहिए ।ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती और ज्ञान प्राप्त करने का साधन भी विस्तृत होता है। इसलिए अपनी मातृभाषा के साथ-साथ अन्य मातृभाषाओं को बोलने, समझने और पढ़ने का प्रयास हमें ज्ञानवान बनायेगा।कर्नाटक से जुड़ी डॉ. गीता तलवार ने कहा यह पुस्तक रंग - बिरंगे मोतियों की माला है । किताब में श्रीमती कमला जी द्वारा सुरजीत गीतांजलि गीत संग्रह के गीतों में यही मौलिकता और शस्वत्ता विद्यमान है श्रीमती कमला जी की काव्य कृति गीतांजलि विविध वर्णन गीतों का समेकित रूप है जहां एक और भक्ति रस में सारोबार गीत है तो वही एक सांसारिक प्रेम बंधुत्व के भावों से ओतप्रोत की तभी गीतांजलि का अंग है छायावादी गीतों की सुंदर कलात्मक छवि भी गीतांजलि में देखने को मिलती है
डॉ. आलोक रंजन पाण्डेय, दिल्ली से आपने लेखिका के नाम के साथ शुरु किया कि अमिता का अर्थ ही अमृत है।17अध्याय है इस पुस्तक में । 17 संख्या के कई अर्थ होते हैं उनमें से एक है कर्म का पाठ और यह किताब उसी पर आधारित लगी ।
जब रचनाकार आलोचक हो जाता है और उसकी लेखनी समाज को लेकर चलती है उसी का पर्याय है यह पुस्तक । निरंतर ढूँढना ही अमिता होती है और लेखिका निरंतर ढूँढ रही हैं। प्रेमचंद की पंक्ति का तदम्यता सृजन के नमन के साथ जोड़ा कि जो जहाँ का है वो वहाँ का नहीं तो वो जहां का नहीं । चित्रलेखा आलेख में स्त्री की संवेदना को लेखन रूपायित किया कि सर्जक के रूप में भी और विध्वंसक के रूप में भी । प्रेम तन्मयता है, त्याग है, स्मृति है यह पुस्तक में लेखिका ने उद्धृत किया ।
महाराष्ट्र के डॉ. संतोष कुलकर्णी सभी का आभार ज्ञापित किया। महाराष्ट्र से ही डॉ. विष्णु राठौड़ ने इस कार्यक्रम का सूत्र - संचालन किया ।इस पुस्तक परिचर्चा में गुजरात से डॉ. सुशीला व्यास,दिल्ली डॉ. आरती पाठक, यू .पी .से डॉ. छवि सांगल, असम से डॉ. अर्चना जी, आगरा से डॉ. राधा शर्मा, जयपुर से डॉ. दीपिका विजयवर्गीय, डॉ. कंचन गुप्ता, प्रयागराज से डॉ. ऋतु माथुर, नांदेड़ महाराष्ट्र से दीपक पवार, जी के साथ ही बंगलौर से डॉ. गगन कुमारी हलवार, महाराष्ट्र से ही डॉ. पढ़रीनाथ पाटिल जी जुड़े तथा कार्यक्रम संपन्न हुआ ।
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