ये मुखर्जीनगर हैं जनाब....
यहाँ आदमी नहीं सपने रहते हैं...
सपने जो खुद ने देखे, परिवार ने देखे, पूरे गाँव ने देखे ...
पता हैं यहाँ के कमरे अपने घर के बाथरुम से भी छोटे होते हैं..
ढाबे के खाने में जब तक मक्खी ना बैठे, तब तक शगुन नहीं होता ...
किताबें, नोट्स, फोटोकॉपी और कुछ करे ना करे चश्मे के नम्बर जरुर बढ़ा देते हैं...
भारत माता की खातिर कुछ करने की आरजू रखने वाले ये लोग अपनी माँ से ही दिनों तक बात नहीं करते.... ना कपड़ों की मेचिंग का पता, न खाने के स्वाद का ...
किसी के बाल उड़ रहे हैं, तो किसी की कमर कमरा बन रही हैं...
रात को सोते समय महबूबा की पिक देखने वाले ये लोग, साधारण इन्सान नहीं होते.. .
पता है सबको मंजिल नहीं मिल सकती, फिर भी रोज खुद को मोटीवेट रखते है...
घर वाले इन्हें घमंडी तो दोस्त नोटंकी बोलते हैं...
पर सच में ये भी प्यार के भूखे हैं ...
ये भी इन्सान ही हैं..
प्री, मेंस, और इन्टरव्यू की रेस में भागते इनके भी तो कोई अपने हैं...
इनको भी सावन में अपने महबूब की याद सताती है...
ये मुखर्जीनगर है जनाब....
यहाँ आदमी नहीं सपने रहते हैं......
अर्चना चौधरी
Comments
Post a Comment