कथक को नई पहचान और नई बुलंदियों पर पहुँचाने वाले बिरजू महाराज अब हमारे बीच नहीं रहे। पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित बिरजू महाराज का 83 वर्ष की आयु में निधन हो गया। अपने पीछे छोड़ गए तो केवल अपने घुंघरूओं की खनक और अपनी कला की पोटली!
पंडित बिरजू महाराज का जन्म 04 फरवरी 1937 को लखनऊ के कालिका बिंदादीन घराने में हुआ था। यूँ तो सभी उन्हें बिरजू महाराज के नाम से जानते हैं लेकिन महाराज का असली नाम बृजमोहन नाथ मिश्रा था। घर में उन्हें प्यार से बिरजू कहकर पुकारा जाता था। 13 वर्ष की छोटी सी आयु में बिरजू महाराज ने अपने पिता से शिक्षा ली चूँकि उनके पिता व चाचा खुद शास्त्रीय संगीत के ज्ञाता थे, उन्हें कथक नृत्य की कला विरासत में ही मिली थी।
बिरजू महाराज ने बहुत कम उम्र में ही अपने पिता को खो दिया जिसके बाद चाचा शंभु महाराज और लच्छू महाराज से उन्होंने कथक नृत्य की बारीकियों को सीखा। महज नौ वर्ष की उम्र में पिता को खोने के बाद परिवार की जिम्मेदारियाँ उनपर आ गयीं लेकिन अपने नृत्य को उन्होंने जारी रखा। कुछ अरसा बीतने के बाद वे दिल्ली आये और यहां उन्होंने संगीत भारती (दिल्ली) में छोटे बच्चों को कत्थक सीखाना शुरू किया और फिर कत्थक केंद्र (दिल्ली) का कार्यभार भी संभाला। बिरजू महाराज ने तबला, पखावज, नाल, सितार आदि कई वाद्य यंत्रों पर भी महारत हासिल की थी, वो बहुत अच्छे गायक, कवि व चित्रकार भी थे।
1986 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया, इसके साथ ही उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरुस्कार और कालिदास सम्मान से भी नवाजा गया था। उन्होंने कई प्रसिद्ध फिल्मों जैसे- उमराव जान, डेढ़ इश्कियां, बाजीराव मस्तानी में डांस कोरियोग्राफ किया. वहीं 2012 में विश्वरुपम फिल्म में कोरियोग्राफी के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
ऐसे ही न जानें कितने ही पुरुस्कार उन्होंने अपने नाम किये थे। उनकी मृत्यु की खबर ने सभी को आहत किया है। कई बड़ी हस्तियों जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ, नितिन गडकरी, मालिनी अवास्थी ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।
~ प्रेरणा
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