किसी एक भाषा को खो देना बहुत बड़ा नुकसान होता है क्योंकि भाषा में केवल शब्दों का ही नहीं बल्कि संस्कृतियों का समावेशन होता है। किसी एक भाषा के लुप्त हो जाने से एक पूरी संस्कृति लुप्त हो जाती है। अनुवादक तथा दुभाषिए एक प्राकर के सांस्कृतिक दूत अर्थात कल्चरल एंबेसडर होते हैं। इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस के अवसर पर अनुवाद को तथा अनुवाद विधा के महत्व को स्वीकारा है, जिससे यह संदेश दिया जा सके कि वैश्वीकरण के दौर में देशज भाषाओं को लुप्त होने से बचाया जाना अत्यंत आवश्यक है। ऐतिहासिक रूप से देखें तो ज्ञात होता है कि अनुवाद का उद्गम धर्म तथा धार्मिक ग्रंथों के प्रचार-प्रसार से हुआ है लेकिन धीरे-धीरे समय बदलते हुए अनुवाद न सिर्फ धार्मिक क्षेत्र बल्कि सभ्यता, संस्कृति, संचार, वाणिज्य, व्यवसाय, अंतर सांस्कृतिक संवाद, पर्यटन, सॉफ्टवेयर, इंटरनेट आदि के लिए आवश्यक ही नहीं अपितु अपरिहार्य बन गया है
भारत में विभिन्न धर्म, जाति और वर्ग के लोगों का मिश्रण ही नहीं, बल्कि भाषाओं की भी विविधता है। उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक विभिन्न प्रांतों में भाषाओं की बोली बदल जाती है, लेकिन उनके भाव यथावत रहते है। जिन्हें हमें समझने के लिए अनुवाद की आवश्यकता होती है। जब हम दक्षिण भारत में जाते है, तो वहां की भाषा हमारे से भिन्न है, लेकिन कोई अनुवादक हमें हमारी भाषा में उसका अनुवाद करके बताए तो हम उसे समझ लेते है। इससे हमें जीवन में अनुवाद की आवश्यकता और महत्ता समझ आती है। 30 सितंबर को समूचे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस मनाया जाता है। इससे अनुवाद कितना जरूरी है, इसके बारे में भी पता चलता है। भारत में अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग हिन्दी के रूप में किया जाता है। यहां लोग हिन्दी ही समझते है, जबकि वास्तविक हिन्दी लोगों को पता नहीं होती है। अंग्रेजी की अपेक्षा उसका हिन्दी कठिन होती है। यूं तो भारतीय संविधान में सिर्फ 22 भाषा को मान्यता प्राप्त है, विभिन्न प्रांतों के अलग अलग क्षेत्र में ही भाषा और उनकी बोलियां बदल जाती है। एक आंकड़े के अनुसार भारत में ऐसी 121 भाषाएं देश में बोली और समझी जाती हैं। अपने मातृस्थल से कार्यस्थल पर जाने पर कई बार भाषाओं में अंतर आ जाता है। कार्यस्थल पर मातृभाषा नहीं चलती तो हमें अनुवाद की आवश्यकता होती है। हिंदी भाषी क्षेत्र में भी हिन्दी के कई प्रकार बोले जाते हैं। इनमें से एक प्रकार है खड़ी बोली। आम जन में यह रूप अत्यधिक प्रचलित है। इसमें कई देशी विदेशी शब्दों का समन्वय इस तरह हो जाता है जैसे ये शब्द हिन्दी के लिए ही बने है। आम बोलचाल में इनका इतना व्यापक प्रयोग किया जाता है कि कई बार उनके मूल हिन्दी शब्दों को हम चाह कर भी ढूंढ नहीं पाते या बड़ी कठिनाइ से प्राप्त होते हैं। पहले अनुवाद को सिर्फ भाषायी गतिविधि समझा जाता था, लेकिन बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक से अनुवाद के क्षेत्र में एक प्रस्थान बिंदु आया है जिसमें अनुवाद को महज भाषाई गतिविधि न समझ कर सांस्कृतिक तथा राष्ट्रीय महत्व का कार्य समझा जाने लगा है। इसके प्रमुख कारण हैं- पहला कारण यह है कि 21वीं शताब्दी अनुवाद की शताब्दी है इस युग में अनुवाद के बिना जीवन में कल्पना भी नहीं की जा सकती। दूसरा कारण यह है कि अब गूगल, अमेजॉन, फ्लिपकार्ट, माइक्रोसॉफ्ट, सहित विश्व की बड़ी-बड़ी कंपनियां सभी देशों को अपनी वस्तुओं और सेवाओं को बेचना चाहती है तथा उन्हें भाषाई अवरोधों को तोड़ते हुए व्यापार में आगे बढ़ना है। आज इन प्रमुख कंपनियों की वेबसाइट का हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद होना इस बात का प्रमाण है कि अनुवाद का महत्व बढ़ रहा है। तीसरा कारण यह है कि आज के वैश्वीकरण के दौर में सभी देश एक दूसरे पर काफी हद तक निर्भर हैं क्योंकि कोई भी देश अलग-थलग रहकर अपने नागरिकों को न तो अच्छी सुविधाएं प्रदान कर सकता है और न ही विकास कर सकता है। सभी साधन प्रदान के लिए किसी न किसी भाषा की आवश्यकता होती है। इसमें अनुवाद प्रमुख रूप में उभर कर सामने आता है। चौथा कारण यह है कि विश्व के सभी देशों के नेताओं को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय मंचों के कार्यक्रम में जाने के लिए अनुवादकों तथा दुभाषियों की आवश्यकता पड़ती है।सभी देश अपने यहां अनुवाद एवं निर्वचन को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं। भारत में साहित्य अकादमी, नेशनल बुक ट्रस्ट, प्रकाशन विभाग, राष्ट्रीय अनुवाद मिशन, केंद्रीय हिंदी संस्थान, हिंदी ग्रंथ अकादमी, आदि भाषा अकादमियां तथा संस्थाएं लिखित अनुवाद के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका अदा कर रही हैं। इसी के साथ-साथ आई.आई.टी, सी. डैक, टीडीआईएल आदि संस्थाएं मशीन अनुवाद करने का काम कर रही है। साहित्य अकादेमी, नेशनल बुक ट्रस्ट जैसी कुछ संस्थाएं भारतीय भाषाओं से विदेशी भाषा तथा विदेशी भाषाओं से भारतीय भाषाओं में अनुवाद कार्य करने की परियोजनाएं चला रही हैं।
~ नीलाक्ष वत्स
समृद्ध भाषा का प्रयोग कर लेख में अनुवाद की महत्ता को समझाने का अच्छा प्रयास किया है।
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