प्रत्येक वर्ष 12 जून को विश्व में बाल श्रमिकों की दुर्दशा को उजागर करने के लिये सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिक संगठनों, नागरिक समाज के साथ-साथ दुनिया भर के लाखों लोगों को एक साथ लाने के लिये विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का आयोजन किया जाता है। विश्व बाल श्रम निषेध दिवस की शुरुआत ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (ILO) द्वारा वर्ष 2002 में की गई थी।
बाल श्रम पर 'आभासी अभियान' का आयोजन ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (International Labour Organization- ILO) द्वारा 'ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर' तथा 'इंटरनेशनल पार्टनरशिप फॉर कोऑपरेशन इन चाइल्ड लेबर इन एग्रीकल्चर' के साथ मिलकर किया जा रहा है।
इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य बाल श्रम की वैश्विक स्थिति पर ध्यान केंद्रित करना तथा बाल श्रम को पूरी तरह से समाप्त करने के लिये आवश्यक प्रयास करना है।
सामान्यत: बाल श्रम को ऐसे पेशे या कार्य के रूप में परिभाषित किया जाता है जो बच्चे के लिये खतरनाक तथा नुकसानदायक हो। जो कार्य बच्चों को स्कूली शिक्षा से वंचित करता है या जिस कार्य में बच्चों को स्कूली शिक्षा और काम के दोहरे बोझ को संभालने की आवश्यकता होती है।
इसमें वे बच्चे शामिल हैं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, राष्ट्रीय कानून द्वारा परिभाषित न्यूनतम कानूनी उम्र से पहले किसी व्यावसायिक कार्य में लगाया जाता है।
गुलामी या गुलामी के समान प्रथा, वेश्यावृत्ति या अवैध गतिविधियों के लिये बच्चे का उपयोग बाल श्रम के सबसे निकृष्टतम रूप हैं।
20 नवंबर, 1989 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 'बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन' (UNCRC) को अपनाया गया था, जो 18 वर्ष की आयु के सभी बच्चों की किसी भी प्रकार के व्यवसाय में लगाने पर प्रतिबंध आरोपित करती है।
यह कन्वेंशन बच्चों को आर्थिक शोषण से बचाने के लिये उन कार्यों की पहचान करके मान्यता देती है जो बच्चों के लिये खतरनाक हो सकते हैं तथा जिनसे बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो सकती है।
भारत द्वारा UNCRC को वर्ष 1992 में अनुमोदित किया गया था। हालाँकि भारत में 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को सभी प्रकार के कार्य करने से प्रतिबंधित नहीं किया गया है। भारत में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों पर सभी प्रकार के व्यावसायिक कार्यों में लगाने से प्रतिबंधित किया गया है। जबकि 14 से 18 वर्ष से किशोरों पर केवल ‘खतरनाक व्यवसायों’ में कार्यों में लगाने पर प्रतिबंध लगाया गया है।
बाल श्रम में अनुमानित 152 मिलियन बच्चे कार्यरत हैं, जिनमें से 73 मिलियन बच्चे आजीविका के लिये खतरनाक उद्योगों में काम करते हैं।
बाल श्रम मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र (71%) में केंद्रित है - इसमें मछली पकड़ना, वानिकी, पशुधन पालन और जलीय कृषि शामिल है। सेवाओं में 17% और खनन सहित औद्योगिक क्षेत्र में 12% बाल श्रमिक संलग्न हैं।
राष्ट्रीय जनगणना 2011 के अनुसार, 5-14 वर्ष की आयु वर्ग की भारत में कुल जनसंख्या लगभग 260 मिलियन है। इनमें से कुल बाल आबादी का लगभग 10 मिलियन (लगभग 4%) बाल श्रमिक हैं जो मुख्य या सीमांत श्रमिकों के रूप में कार्य करते हैं।
15-18 वर्ष की आयु के लगभग 23 मिलियन बच्चे विभिन्न कार्यों में लगे हुए हैं।
गुरुपद्स्वामी समिति (Gurupadswamy committee) के निष्कर्षों तथा सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए, केंद्र सरकार द्वारा ‘बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम’ 1986 बनाया गया।
हाल ही में, भारत ने 'अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (International Labour Organization- ILO) के कन्वेंशन संख्या- 138 (रोज़गार के लिये न्यूनतम आयु) और कन्वेंशन संख्या- 182 (बाल श्रम के सबसे बुरे रूप) का अनुसमर्थन किया है।
इन दो प्रमुख ILO कन्वेंशनों के अनुसमर्थन के साथ ही भारत ILO के आठ प्रमुख कन्वेंशनों में से 6 का अनुसमर्थन कर चुका है। चार अन्य कन्वेंशन बलात श्रम उन्मूलन, 1930 (कन्वेंशन संख्या- 29), बलात श्रम उन्मूलन, 1957 (कन्वेंशन संख्या- 105), समान कार्य के लिये समान पारिश्रमिक, 1951 (कन्वेंशन संख्या- 100), रोजगार तथा भेदभाव (रोजगार और व्यवसाय) कन्वेंशन, 1958 (कन्वेंशन संख्या- 111) हैं।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-23 मानव दुर्व्यापार, बेगार तथा बंधुआ मज़दूरी की प्रथा का उन्मूलन करता है। जबकि अनुच्छेद-24 किसी फैक्ट्री, खान, अन्य संकटमय गतिविधियों यथा-निर्माण कार्य या रेलवे में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के नियोजन का प्रतिषेध करता है।
बाल श्रम को सामाजिक रूप से बड़े पैमाने पर स्वीकार किया जाता है अत: बच्चों का लगातार शोषण जारी रहता है। अत:बाल श्रम के प्रति समाज में 'शून्य सहिष्णुता' (Zero Tolerance) को अपनाने की आवश्यकता है।
~ नीलाक्ष वत्स
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