विश्व के वो पहले महामानव जिन्होंने ईश्वर विरहित स्वयं अनुभूति के आधार पर मनुष्य के दुःखों का कारण खोजा। हालांकि बुद्ध के पूर्व सनातन धर्म में बहुत सारे आचार्य, ऋषि, तत्वज्ञानी, दार्शनिक अवश्य हुए थे। परंतु बुद्ध अनूठे थे। इसीलिए ये मानना होगा कि बुद्ध सम थे। ना वो पुराने ऋषि यों की तरह मंत्र - तंत्र, योग- याग में विश्वास करते हैं ना समकालीन महामानव महावीर की तरह जितेन्द्रिय का दावा करते हैं । बुद्ध सनातन धर्म की अति उच्चतम पराकाष्ठा हैं। जिसे तत्कालीन समाज समझ नहीं पाया। जो समझा भिक्खू हो गया। मात्र ध्यान के आधार पर नव मनुष्य, नव संस्कृति और नव दर्शन देने में बुद्ध सफल हुए। तत्कालीन अनेक राजा - महाराजा भी उनसे प्रभावित हुए। हालांकि सनातन धर्म का सबसे विकसित वो युग था। जिसमें एक ओर बुद्ध मानवता की सेवा सत्य और करुणा के आधार पर कर रहें थे। तो दूसरी ओर महावीर सत्य, अहिंसा को आधार मानकर मानवता का प्रचार कर रहे थे।
तत्कालीन समाज को लूटने वाले तथाकथित धर्म के ठेकेदार नाराज थे। उन्हें लगा कि यदि हमारा समाज इन दोनों महामानवों के पीछे अगर चला तो हमारा क्या होगा? इस डर से उन्होंने समाज को बुद्ध और महावीर से दूर रहने को कहा। हो सकता हैं उन्हें तत्कालीन विद्रोही, ग़द्दार कहा गया हों। यही तो कारण हैं कि बुद्ध और उनके अनुयाई को बुद्धू कहा गया। बुद्ध की अनुभूति अत्यंत अनूठी थीं। वो अपनी उस अनुभूति को दुनियाँ के सामने रखना चाहते थे। हिंदुस्थान के बाहर जहाँ - जहाँ भी मनुष्य हैं वहाँ - वहाँ पहुँचना जरूरी समझा। ये उनका निर्णय मानवता के लिए बड़ा वरदान साबित हुआ है। सनातनी यों की तरह अगर बौद्ध विचार भारत में ही रहता तो घुट कर समाप्त हो जाता। शायद बुद्ध यह सत्य जानते थे। आज दुनियाँ में बुद्ध धम्म का डंका बज रहा हैं। भारत! बुद्ध की भूमि कहाँ हैं?
आप भले ही बुद्ध धम्म को धर्म कहते होंगे या मानते होंगे। मैं मात्र एक विचार मानता हूँ या वह प्रकाश मार्ग मानता हूँ जिसपर चलकर हर इंसान प्रकाशित होता ही हैं ।बुद्ध के वो विचार जो अनुभूति से ही प्रकाशमान होते हैं। यद्यपि हमने उसे हिंदू ओं की तरह बना दिया। जिस तरह हर किसान का लड़का किसान नहीं होता, डॉक्टर का डॉक्टर नहीं होता ना ही शिक्षक का शिक्षक! उसी तरह हर बौद्ध मार्गी व्यक्ति का लड़का बुद्ध नहीं होता। बुद्ध का अर्थ ज्ञान हैं। जिसे भी ईश्वर विरहित, बाह्याडंबर - कर्मकांड विरहित, स्वयं आधारित ज्ञान हुआ हैं बुद्ध हैं। परन्तु भारत वर्ष में ज्ञान आधारित 'बुद्ध' जातीय आधारित बन गया। विश्वरत्न डॉ बाबासाहेब आंबेडकर अवश्य ही आधुनिक बुद्ध थे पर हमारे बुद्धि में भेद निर्माण कर सनातनीयों ने उन्हें आधुनिक मनु कहा। और हम अपने आप को बौद्ध समझने वाले जिस मनु और उसके विचारों को बाबासाहेब उखाड़ फेंकना चाहते थे। हमने बाबासाहेब को आधुनिक मनु कहना शुरू किया और मनु को हमने जिंदा रखा।
भारतीयों की अड़चन यह हैं कि हम सनातनी यों के जैसे रहना चाहते हैं क्योंकि युगों- युगों से उन्होंने बहुजन समाज को मानसिक, वैचारिक गुलाम तो रखा ही अपने सारे मंदिर और कर्मकांड से दूर रखा। यहीं कारण हैं कि आज बुद्ध के द्वारा हम उन्हें हराना चाहते हैं। इसी कारण बड़े - बड़े स्तूप बने। वहाँ पूजा, दिया, बत्ती, नगाड़े बजाने की प्रथा शुरू हुई । वस्तुतः बुद्ध को ये सबकुछ नहीं चाहिए था। उन्हें शांतिपूर्ण विपश्यना चाहिए थी। हालांकि बुद्ध को ठीक- ठीक समजने वाले विपश्यना कर अपना उद्धार कर रहे हैं। पर बहुत बड़ा वर्ग उन्हीं कर्मकांडों में फिरसे फँस गया हैं जहाँ से निकालने के लिए बुद्ध राजभवन छोड़ जंगल - वनों में भटके।
ईश्वर विरहित नव समाज का निर्माण करना चाहने वाले बुद्ध को ही हमने ईश्वर जब बनाया तभी हमने उनके विचारों की हत्या की। जब बुद्ध को ईश्वर बनाने की कोशिश की जा रही थीं तभी सनातनी यों ने बुद्ध को विष्णु का अवतार घोषित कर दिया। हालांकि बौद्धों ने वह नहीं माना। पर ईश्वर तो माना ही! वो तो हमारे देश में बाबासाहेब आंबेडकर जी जन्मे जिन्होंने बुद्ध को महामानव कहा। बस फिर क्या था हमने बाबासाहेब को भी ईश्वर बनाने की प्रक्रिया शुरू की और उसपर अंमल भी कर दिया। भारतीय आकाश में बुद्ध धम्म में पहले एक ईश्वर थे अब दो बन गये। उत्तर भारत में राहुल सांकृत्यायन को भी बुद्ध का अवतार मानते हैं, मैत्रेय को कुछ लोग, ओशो को भी बुद्ध का अवतार मानते हैं। ऐसा ही चला तो वो दिन दूर नहीं कि बुद्ध धम्म! हिंदू धर्म की तर्ज़ पर 33 करोड़ ईश्वर बनाकर बुद्ध के मूल उद्धेश्य को ही इतना दूर कर दे कि लोग कर्मकांड और पूजा अर्चना में अटके रहें। बौद्ध भिक्खू भी पंडितों के तर्ज़ पर बन ही गए हैं। एक दुकान को विरोध कर दूसरा दुकान खोल दिया गया। और हमें पता भी नहीं चला।
मैं बुद्ध के विचारों को तटस्थता से जब देखता हूँ तो यह सब देखता हूँ। देखिए, सोचिए शायद नव बौद्ध धम्म का पुनश्च निर्माण का समय आया हैं।
डॉ पंढरीनाथ शिवदास पाटिल
गंगामाई महाविद्यालय नगाव
धुले महाराष्ट्र
बहुत सुंदर विचार एक महामानव के संदर्भ में
ReplyDeleteक्या बात है सर,बहुत श्रेठ विश्लेषण,हमारा दुर्भाग्य है कि हम लकीर के फकीर बन जाते हैं, धर्म का अनुसरण भी देखा देखी करते हैं, आज ज्यादा आवश्यकता है कि हम मर्म को समझें। बधाई सर और धन्यवाद भी,ठहरी हुई तरंगों पर कंकर मारने के लिए।🙏
ReplyDeleteबुद्ध की विचार धारा के प्रति वास्तविक विचार प्रकट किए गए है।
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