विश्व हिंदी संगठन, नई दिल्ली द्वारा विश्व हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित "हिंदी : वैश्विक पारस्परिकता की सेतु" विषय पर एक दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय ई- संगोष्ठी का आयोजन रविवार, 10 जनवरी 2021 को किया गया। विश्व हिंदी संगठन के आलोक रंजन पांडेय ने बताया कि हम हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए सदैव तत्पर हैं। उन्होंने बताया कि हिंदी भारत की बिंदी है, मानव जाति को उज्ज्वल हिंदी भाषा से ही बनाया जा सकता है। इसके बाद कार्यक्रम की शुरुआत छवि जी के स्वागत गीत के साथ हुई । कार्यक्रम में प्रथम वक्ता के रूप में श्रीमती सी. आर. गार्डी आर्ट्स कॉलेज, मुनपुर की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. सुशीला व्यास जी आमंत्रित रहीं। उन्होंने सारगर्भित व्याख्यान प्रस्तुत किया। उनके अनुसार हिंदी भाषा सभी को जोड़ती है। उन्होंने बताया कि हिंदी बहुभाषियों के बीच सेतु का काम कर रही है। उन्होंने हिंदी भाषा संपर्क भाषा के रूप में परिभाषित करते हुए उसके महत्व को उजागर किया। हिंदी भाषा के इतिहास को याद करते हुए इसमें योगदान देने वाले सभी माध्यमों तथा व्यक्तियों का परिचय दिया। व्याख्यान के अंत में उन्होंने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार पर कदम उठाने के लिए सभी प्रेरित किया। कार्यक्रम में द्वितीय वक्ता के रूप में चौ. ब. गो. रा. क. महावि., श्रीगंगानगर, राज. के हिंदी विभाग में कार्यरत डॉ. बबीता काजल जी आमंत्रित रहीं। उन्होंने सभी के समक्ष तथ्यपूर्ण वक्तव्य प्रस्तुत किया। अपने व्याख्यान की शुरूआत में ही उन्होंने हिंदी को माँ की संज्ञा प्रदान की। हिंदी के विस्तृत क्षेत्र पर चर्चा करते हुए उन्होंने हिंदी भाषा की उपयोगिता पर अपने विचार प्रकट किए। उन्होंने विचारों के साथ तथ्यों के माध्यम से भी हिंदी के विकास उजागर किया। हिंदी को विश्व भाषा बनाने के सपने पर दृष्टि डाली एवं उसके व्याकरणिक पक्ष पर भी अपना मत प्रकट किया। अंत में उन्होंने हिंदी भाषा को समावेशी भाषा कहकर अपना व्याख्यान पूर्ण किया। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए एम.जी.व्ही. कला,विज्ञान एवं वाणिज्य महाविद्यालय,मनमाड नासिक( महाराष्ट्) में कार्यरत डॉ. विष्णु राठोड जी को मंच पर विश्व हिंदी संगठन का परिचय एवं उद्देश्य बताने के लिए आमंत्रित किया गया। कार्यक्रम में तृतीय वक्ता के रूप में सल्तनत बहादुर पी. जी.काॅलेज बदलापुर, जौनपुर के हिन्दी विभाग में कार्यरत डॉ. पूनम श्रीवास्तव जी आमंत्रित रहीं। उन्होंने सारपूर्ण व्याख्यान की प्रस्तुति की। उन्होंने हिंदी भाषा के इतिहास को बताया। उन्होंने हिंदी को संस्कार की भाषा कहा। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी की गुणवत्ता पर बात करते हुए हिंदी के विकास पर अपनी दृष्टि डाली। उन्होंने विश्व भाषा की परिभाषा देते हुए हिंदी की ज़रूरत को स्पष्ट किया। उन्होंने हिंदी विश्व को बात रखी और साथ ही उसके स्वरूप पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में रूसी - भारतीय मैत्री संघ दिशा, मॉस्को, रूस मुख्य के अध्यक्ष एवं दिशा पत्रिका, मॉस्को, रूस के संपादक माननीय डॉ. रामेश्वर सिंह जी आमंत्रित रहे। उन्होंने रोचक एवं सार्थक व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने हिंदी भाषा को एक धागा तथा अन्य भाषाओं को मोती बताते हुए कहा कि इन सभी भाषा रूपी मोतियों को हिंदी जोड़ती है। उन्होंने रसिया के भाषा इतिहास पर बात करते हुए रूसी विद्वानों के बारे में बताया। हिंदी की संस्कृति, सभ्यता पर उन्होंने विस्तार से चर्चा की। रामेश्वर जी निरंतर हिंदी के प्रचार - प्रसार में अपना योगदान दे रहे हैं। उन्होंने ई - संगोष्ठी में भी रसिया में हिंदी के प्रचार - प्रसार के बारे में बताया और साथ ही उसकी प्रक्रिया भी समझाई। हिंदी के वैश्विक फलक पर अपने विचार प्रकट करते हुए अपनी बात पूर्ण की। इसके बाद कानपुर की संगीत विभाग की प्रोफेसर रौली कन्नोजिया ने अपनी मधुर ध्वनि में लोकगीत का गायन किया।कार्यक्रम का सुंदर संचालन डॉ. सुनील तिवारी जी ने किया जो कि दिल्ली विश्वविद्यालय के शहीद भगत सिंह कॉलेज के हिंदी विभाग में कार्यरत हैं।
एनएसएस हिंदू कॉलेज, चंगनास्सेरी, कोट्टायम, केरला में कार्यरत डाॅ. श्रीकला जी ने सभी अतिथियों एवं श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापन कर संगोष्ठी को पूर्ण किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ. संतोष कुलकर्णी, डॉ. ममता यादव, डॉ. कोयल विश्वास, डॉ.गरिमा जैन, डॉ.आरती पाठक, श्रुति गौतम का विशेष योगदान रहा
बहुत सुंदर आयोजन तथा सारे विद्वान वक्ताओं का ज्ञानवर्धक वक्तव्य बहुत उम्दा रहा। आयोजन समिति को हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteExcellent information
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