दक्षिण कोरिया (South Korea) के बुसान यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज(BUFS) में हिंदी के विरूद्ध साज़िश का मामला सामने आया हैl कुछ भारत-विरोधी व्यक्तियों के दबाव में प्रशासन ने अगले सेमेस्टर से भारत-विभाग की भाषा के रूप में हिंदी की जगह अंग्रेजी पढ़ाने का फ़ैसला किया हैl दलील दी गई है कि भारत में काम करने के लिए हिंदी आना जरूरी नहीं हैl BUFS के हिंदी प्रेमी छात्र और शिक्षक, प्रशासन द्वारा अचानक लिए गए इस फ़ैसले से स्तब्ध हैंl छात्रों ने लोकतांत्रिक तरीके से इस फैसले का विरोध करते हुए भारत विभाग के छात्रों के बीच जनमत सर्वेक्षण कराया है जिसमें भाग लेने वाले 102 छात्रों में से 86 अर्थात् 84.3% BUFS के निर्णय के विरोध में हैंl इसे यों कहें कि 84.3% जनमत हिन्दी के पक्ष में हैl लेकिन, भारत-विरोधी हावी हैंl यदि भारत सरकार ने यथाशीघ्र हस्तक्षेप नहीं किया तो भारतीय अस्मिता को भारी नुक़सान होगा और गंभीर दूरगामी परिणाम होंगेl
ग़ौरतलब है कि BUFS के भारत विभाग में पिछले सैंतीस सालों से हिंदी की पढ़ाई हो रही है और हर साल पैंतीस छात्र हिंदी पढ़ते रहे हैंl BUFS के हिन्दी शिक्षकों ने हिन्दी भाषा-शिक्षण पर काफ़ी काम किया हैl दरअसल, हिंदी भारत-कोरिया के बढ़ते द्विपक्षीय संबंधों की सहगामी रही हैl भारत की विविधवर्णी सभ्यता-संस्कृति और हिंदी की घुमावदार लिखावट कोरियाई छात्रों को आकृष्ट करती हैl इसी कारण कोरिया के दो प्रमुख विश्वविद्यालयों -- BUFS और HUFS के भारत विभाग और हिंदी विभाग एशिया में मशहूर हैंl पिछले कुछ सालों से BUFS में मौज़ूद मुट्ठी भर भारत-विरोधी लोगों को हिन्दी विभाग की लोकप्रियता पसंद नहीं आ रही थीl जब तक BUFS में हिंदी के दो स्थाई प्रोफेसर थे तब तक इन हिन्दी विरोधियों की नहीं चली लेकिन, उनके रिटायर होने के बाद प्रशासन में मौज़ूद भारत और हिंदी विरोधी व्यक्तियों को मौक़ा मिल गया क्योंकि अस्थाई शिक्षक कुछ बोल नहीं सकतेl छात्र भी एक सीमा से आगे नहीं जा सकते हैं क्योंकि उनके ग्रेड का सवाल हैl
ज्ञात हो कि भारत में कोरियाई भाषा दो से शुरू होकर तेरह विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाने लगी हैl हाल ही में कोरिया की पहल पर भारत सरकार ने न.शि.नी. के तहत स्कूलों में भी कोरियाई भाषा की पढ़ाई को हरी झंडी दे दी हैl ऐसे में, इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि भारत में कोरियाई भाषा को सरकारी स्तर पर महत्त्व मिल रहा है जबकि कोरिया के दो विश्वविद्यालयों में से एक से हिंदी की विदाई हो रही है, वह भी तब जबकि वहाँ के छात्रों में हिन्दी लोकप्रिय हैl
भारत के सांस्कृतिक स्वरूप को बदलने की सदियों से चल रही साज़िश की इस नई कड़ी को क्या हम कामयाब होने देंगे? भारतीय समाज से अनुरोध है कि इस साज़िश का विरोध करे और भारत सरकार से अनुरोध है कि राजनयिक स्तर से इस साज़िश को नाकाम कर भारत और हिन्दी की अस्मिता की रक्षा करेl
(लेखक - डॉ. द्विवेदी आनंद प्रकाश शर्मा)
(दिल्ली विश्वविद्यालय)
भारत सरकार को इस पर संज्ञान लेना चाहिए
ReplyDeleteभारत सरकार को इस पर संज्ञान लेना चाहिए
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