मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पंडित मदनमोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक एवं शिक्षण मिशन, शिक्षण अध्ययन केंद्र, रामानुजन कॉलेज, श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज,दिल्ली विश्वविद्यालय,आरमापुर पी.जी. कॉलेज, कानपुर और माउंट कार्मेल कॉलेज, बेंगलुरु के संयुक्त तत्वावधान में पाक्षिक संकाय समवर्धन कार्यक्रम की शुरुआत 26 दिसंबर 2020 से प्रारंभ हुई।श्यामा प्रसाद मुखर्जी महिला महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ साधना शर्मा ने अपनी बात रखना प्रारंभ की।उन्होंने कहा कि अच्छे विद्यार्थी से शिक्षक भी प्रेरित होता रहता है,यह एक दोहरी प्रक्रिया है।
भाषा एक माध्यम है और साहित्य उसकी अभिव्यक्ति।साहित्य के माध्यम से हम समाज के विविध अंगों को परखते हैं।बाद में उन्होंने कहा कि
साहित्य, समाज, भाषा, संस्कृति, और दर्शन यह सब आपस में जुड़े हुए हैं।साहित्य के निर्माण में इन सब की ज़रूरत होती है और साहित्य दर्शन से प्रेरित है,
साहित्य समाज और राजनीति को प्रेरणा देता है।जिस समाज में हम रहते है उसके आधार पर साहित्य बनता है।बुराई के अंदर भी अच्छाई को खोज लेना इंसान की फ़ितरत है जैसे कोरोना जैसी विपरीत परिस्थितियों में भी दूर बैठे लोग "ऑनलाइन" के ज़रिए एक दूसरे से मिल पाए।इसके पश्चात रामानुजन महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. एस पी अग्रवाल ने अपना मत प्रस्तुत किया।उन्होंने बात प्रारम्भ करते हुए कहा कि कोरोना काल की वजह से हुए लॉकडाउन से देश में निराशा बढ़ी।यह काफ़ी मुश्किल दौर रहा।इस दौरान शिक्षण प्रभावित भी हुआ।इसलिए
संकाय संवर्धन कार्यक्रम की बहुत जरूरत थी ताकि ऑनलाइन टीचिंग में बदलाव ला सकें व इसे प्रभावी बना सकें।उन्होंने नई शिक्षा नीति में हुए बदलावों की भी चर्चा की।
नई शिक्षा नीति में जिन महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया गया,उसका भी विस्तृत ज़िक्र किया।उन्होंने स्ट्रकचर, करिकलम आदि की बात की।अंत में उन्होंने कहा कि गहन सोच और क्रिएटिविटी बहुत ज़रूरी है जो आगामी शिक्षा को बदलने वाले होंगे।
इसके पश्चात डॉ गायत्री सिंह ने अपने मत प्रस्तुत किए।उन्होंने बताया कि यह संकाय संवर्धन कार्यक्रम ऑनलाइन मोड में किया जा रहा है।नई शिक्षा नीति में भी वर्चुअल माध्यमों की चर्चा काफ़ी विस्तार से की गई है।
उन्होंने आगे यह भी जोड़ा कि नई शिक्षा नीति में बच्चों को मातृभाषा के प्रति ज़्यादा ध्यान देने की बात कही है हमें इस ओर आगे ध्यान देने की ज़रूरत है।
सबसे अंत में प्रो अनुला मौर्या ने सारगर्भित वक्तव्य दिया।
भाषा का अनुगमन समाज कर रहा है, समाज में राजनीति चल रही है और दर्शन इन सबके ऊपर सत्य को ढूंढ रहा है।भाषा की वास्तविकता साहित्य की तरह काल्पनिक नही होती इसलिए साहित्यकार के लिए भाषा का चुनाव महत्वपूर्ण है।आगे उन्होंने "सत्यम शिवम सुंदरम" की अपने ढंग से सुंदर व्याख्या प्रस्तुत करते हुए कहा कि
समाज सत्य है, भाषा शिव है और साहित्य सुंदर है।भाषा, विज्ञान, समाज, राजनीति हर वर्ग एवं विषयों पर दर्शनशास्त्रीय चिंतन चलता है।
भारतीय पुलिस सेवा में कार्यरत सर्वश्रेष्ठ त्रिपाठी जो उत्तर प्रदेश काडर में डी॰आई॰जी॰ के पद को सुशोभित कर रहे हैं,ने संक्षिप्त में ही बड़ी विशिष्ट बातें हमारे सामने रखीं।उन्होंने कहा कि साहित्य अपने आप मे सभी चीजों का समागम है।विश्व की हर चीज़ साहित्य का सुंदर विषय बन सकती है।साहित्य, समाज, भाषा और दर्शन ये सारे संदर्भ अंतर्विषयक हैं।जब हम चीजों को एक साथ लेकर चलते हैं तो हैं तो हम संवेदनातमक रूप से और अधिक सक्रिय होते हैं और यह काफ़ी रोचक होता है।
अंत में रामानुजन महाविद्यालय के डॉ आलोक रंजन पांडेय जो इस कार्यक्रम के संयोजक भी हैं,ने सभी का सुंदर शब्दों में धन्यवाद ज्ञापित किया।इस सत्र का संचालन डॉ. शिवानी जॉर्ज कर रही थीं।
Good. it is enthusiastically.
ReplyDeleteसभी विद्वानों ने भाषा, समाज, साहित्य और दर्शन के बीच जो अंतर संबंध स्थापित किया है, वह वास्तव में मनन करने योग्य है
ReplyDeleteYah sampurn aayojan atyan gyanvardhak sargarbhit tatha hasya Vinod se a paripurn hone ke Karan Anand dayak bhi Raha
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