संपादकीय :
आज भारतीय संस्कृति की अलख जगानेवाली धरोहर रचना 'रामचरितमानस' की 444 वीं वर्षगांठ है| यह आज भारत के लगभग हर घर में पढ़ी जानेवाली धर्मग्रंथ है जो मनुष्य को न केवल जीवन की राह बताती है अपितु विभिन्न परेशानियों के समय मनुष्य को सही रास्ता दिखाती है तथा उनका उचित निराकरण भी करती हैं। भारतीय मानस आज इस कदर से द्वंद का जीवन जी रहा है जिसमें उसे अपने लिए भी सोचने का अवकाश नहीं रह गया है इस दृष्टि से देखें तो तुलसीदास के नायक मर्यादा पुरुषोत्तम राम सभी के कल्याणकारक हैं। रामचरित मानस की रचना के संदर्भ में खुद तुलसीदास जी रामचरित मानस के एक चौपाई में लिखते हैं कि - एक रात जब वे सो रहे थे तब उनके सपने में भगवान शिव और पार्वती प्रकट हुए और उन्होंने कहा- तुम अयोध्या में जाकर रहो और हिंदी में काव्य रचना करो। मेरे आशीर्वाद से तुम्हारी रचना सामवेद के समान फलवती होगी। भगवान शिव की आज्ञा मानकर तुलसीदासजी अयोध्या आ गए। वहाँ आकर उन्होंने संवत् 1631(1574ई) को रामनवमी के दिन श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारंभ की। इस रचना को लिखने में उन्हें 2 वर्ष, 7 महीने व 26 दिन लगे और इस ग्रंथ की समाप्ति संवत् 1633 (1576ई.) के अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को सातों कांड के साथ पूर्ण हुई। वैसे तो भगवान श्रीराम के जीवन का वर्णन अनेक ग्रंथों में मिलता है, लेकिन गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी गई श्रीरामचरितमानस उन सभी ग्रंथों में अतुलनीय है। श्रीरामचरितमानस को सनातन धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है।
तुलसीदास जी का मानस कलियुग के दोषों को नष्ट कर सबका मंगल करने वाला ही नहीं है, अपितु यह तो निरंतर बहने वाली वह निर्मल एवं पवित्र नदी है जिसमें मांसाहारी रावण जैसे मगरमच्छ और शूर्पनखा जैसी मछलियां भी हैं, परंतु फिर भी ब्रह्मानंद के आकांक्षी उसमें उतरते हैं, गोता लगाते हैं और अपने हृदय-पात्रों में भरकर "जय जय सुरनायक जन सुखदायक" या "नमामि भक्त वत्सलं" अथवा "भए प्रकट कृपाला दीन दयाला" का गायन तन्मय होकर करते हैं। "मंगल भवन अमंगल हारी" तो पिंजरे के तोता-मैना भी गाते हैं। इससे ज्यादा तुलसीदास और मानस की प्रासंगिकता का सबूत और क्या हो सकता है? महाकवि तुलसीदास ने मानस में दुर्गुणों को समाप्त करने के अनेक उपाय बतलाए हैं। वे अपने साहित्य से सभी के लिए कल्याणकारक सन्तप्रवृत्ति के समाज की रचना करने में सफल हुए हैं। उनका सम्पूर्ण सृजन विशेषत: रामचरितमानस आज ही नहीं, भविष्य में भी उसी प्रकार सदुपयोगी तथा प्रासंगिक रहेगा। जो लोग सत्य और प्रेम सामीप्य का रसानंद पान करना चाहते हैं, शबरी और अहिल्या की भाव विह्वलता उनके विश्वास को दृढ़ करती है – कबहु तो दीनदयाल के भनक परेगी कान। सत्य और प्रेम का निवास पर्णकुटी में हो या निषादराज के यहां; कोल, भील, किरात, वानर, रीछों के साथ हो अथवा ऋषि-मुनियों के आश्रमों में चित्रकूट व पंचवटी में, वहां सभी जीव अपने वैर भाव को नष्ट कर देते हैं।तुलसी की रामचरितमानस हमें जीवन के हर सोपान पर नवीन सीख देने वाला, एक अद्वितीय चिंतन क्षमता का विकास करने वाला महाकाव्य है। एक आदर्श व्यक्तित्व कैसा होता है, एक आदर्श कार्य व्यवहार कैसा होना चाहिए? हमें कब कैसे और कहाँ किस प्रकार का कार्य करना है अथवा नहीं करना है, यह विवेक चिरकाल से तुलसी की रामचरितमानस हमें कराती आई है।
रामचरितमानस का प्रत्येक पात्र हमें एक विशिष्ट सीख देता है। चाहे वह सीख श्रीराम के माध्यम से एक आदर्श मर्यादावादी राजा व एक आदर्श पुत्र के रूप में हो या लक्ष्मण के माध्यम से एक आदर्श भाई के रूप में हो। चाहे हनुमान के रूप मे मित्रवत सेवक|
तुलसी जनता की परिस्थितियों से पूर्ण रूप से परिचित थे। उन्होंने हनुमान जी के माध्यम से दुखी व पीड़ित भारतीय जनता में हर्ष व उत्साह उत्पन्न किया। उन्होंने हनुमान जी के माध्यम से यह उदाहरण प्रस्तुत किया कि यदि किसी विशिष्ट कार्य के लिए मन में श्रद्धा, हृदय मेें उत्साह व अपने आराध्य के प्रति सच्ची निष्ठा हो तो वह कार्य विघ्नरहित यथाशीघ्र संपन्न होता है।जैसे हनुमान जी ने लंका में प्रवेश करने से पूर्व पूर्णनिष्ठा और उत्साह के साथ आराध्य राम पर अटूट विश्वास रखके स्तुति की-
प्रबिसि नगर कीजै सब काजा।
हृदय राखि कौसलपुर राजा।।
गरल सुधा रिपु करहीं मिताई,
गोपद सिंधु अनल सिथलाई।।
किसी भी रचनाकार की कृति केवल अपनी युगीन परिस्थितियों में ही समीचीन होती है। लेकिन महाकवि तुलसीदासजी का सम्पूर्ण काव्य वर्तमान में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि उनके खुद के समय था। उनका सम्पूर्ण काव्य वर्तमान बालक, युवा और बुजुर्ग सभी को एक विशेष प्रेरणा देता रहा है और हमेशा देता रहेगा।रामचरितमानस की रचना द्वारा उन्होंने भारतीय संस्कृति और समाज को एकजुटता तथा मजबूती प्रदान की ।यह मानव मूल्यों की दृष्टि से समूचे विश्व का श्रेष्ठतम महाकाव्य है। यह नवीनता, मौलिकता और गहनता की दृष्टि से अप्रतिम है।इसमें व्यापकता और गहराई, यथार्थ एवं आदर्श तथा सूक्ष्मता एवं विराटता का अद्भुत संश्लेषण हुआ है। यह एक राष्ट्रीय महाकाव्य है जो भगवती भागीरथी के समान सबका हित साधने के लिए रचा गया है ।इसलिए रामचरितमानस को लोकहितकारी महाकाव्य भी कहा जाता है।यह मानव जीवन के बृहत्तर मूल्यबोध का कभी न खत्म होने वाला आविष्कार है जिसमें सरल और आदर्श मूल्यों की प्रतिष्ठा की गई है।
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य के प्रोफेसर हैं।)
डॉ. आलोक रंजन पांडेय
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