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विलक्षण प्रतिभा के धनी रामानुजन कैसे बने महान गणितज्ञ, 134वीं जयंती पर विशेष


दुनिया में कभी-कभी ऐसी विलक्षण प्रतिभाएं जन्म लेती हैं जो अपने कम उम्र के जीवन में ही कुछ ऐसा कार्य कर देते हैं जिनके बारे में जानकार सभी लोग आश्चर्य चकित रह जाते हैं। ऐसे ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे महान गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर रामानुजन, जिनपर न केवल भारतीयों को अपितु संपूर्ण विश्व के लोगों को गर्व है। अपने जीवन के मात्र 33 वसंत पूर्ण करनेवाले महान गणितज्ञ रामानुजन ने अपनी विद्वत्ता के बल पर गणित के क्षेत्र में 3884 प्रमेयों (Theorm) का संकलन कर एक नया अध्याय लिख दिया।

विलक्षण प्रतिभा के धनी  श्रीनिवास अयंगर रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887ई. को तमिलनाडु के कोयंबटूर के ईरोड नामक गाँव के एक पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । इनके पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर और माता का नाम कोमलताम्मल था। रामानुजन का बौद्धिक विकास दूसरे सामान्य बालकों जैसा नहीं था और वह तीन वर्ष की आयु तक बोलना भी नहीं सीख पाए थे, जिससे उनके माता-पिता को चिंता होने लगी। जब बालक रामानुजन पाँच वर्ष के थे तब उनका दाखिला कुंभकोणम के प्राथमिक विद्यालय में करा दिया गया। पारंपरिक शिक्षा में रामानुजन का मन कभी भी नहीं लगा और वो ज्यादातर समय गणित की पढ़ाई में ही बिताते थे। इसी कारण जब वे स्कूल में थे अपने शिक्षकों से अटपटे सवाल जैसे कि संसार का पहला पुरुष कौन था? पृथ्वी और बादल के बीच की दूरी कितनी है? आदि करते थे। हालांकि रामानुजन ने गणित की शिक्षा विधिवत किसी से नहीं ली, उन्होंने परिश्रम कर खुद ही गणित सीखा पर उन्हें गणित से इतना प्यार था कि अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान ही उन्होंने कॉलेज लेवल तक के गणित की पढ़ाई कर ली।इसी कारण उनकी ख्याति चारों ओर फैल गई। कहा जाता है कि 11 वीं की परीक्षा में उन्होंने जहां गणित में पूरे अंक प्राप्त किये वहीं सभी अन्य विषयों में फेल हो गए। जिस कारण उन्हें मिलने वाली छात्रवृत्ति बंद हो गई। आर्थिक तंगी के कारण उन्हें ट्यूशन पढ़ाना पड़ा।बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने के बाद के कुछ वर्ष उनके लिए बहुत हताशा और गरीबी भरे थे। इस दौरान रामानुजन के पास न कोई नौकरी थी और न ही किसी संस्थान अथवा प्रोफेसर के साथ काम करने का अवसर। इन विपरीत परिस्थितियों में भी रामानुजन ने गणित से सम्बंधित अपना शोध जारी रखा। गणित के ट्यूशन से महीने में कुल पांच रूपये मिलते थे और इसी में गुजारा करना पड़ता था। यह समय उनके लिए बहुत कष्ट और दुःख से भरा था। उन्हें अपने भरण-पोषण और गणित की शिक्षा को जारी रखने के लिए इधर उधर भटकना पड़ा और लोगों से सहायता की मिन्नतें भी करनी पड़ी।
आर्थिक तंगी होने के बावजूद भी रामानुजन ने हिम्मत नहीं हारी और निरंतर गणित के लिए शोध करते रहे। जब लंदन में रह रहे गणित के विश्व प्रसिद्ध विद्वान प्रो. हार्डी को पता चला तो उन्होंने रामानुजन को अपने पास बुलाकर उनकी प्रतिभा और योग्यता को जांचा। उनकी प्रतिभा से प्रो. हार्डी इतने प्रभावित हुए कि उन्हें अपना मित्र बना लिया और साथ में रिसर्च करना शुरू कर दिया।bरामानुजन और प्रोफेसर हार्डी की यह मित्रता दोनो ही के लिए लाभप्रद सिद्ध हुई और दोनो ने एक दूसरे के लिए पूरक का काम किया। रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी के साथ मिल कर कई शोधपत्र प्रकाशित किए और इनके एक विशेष शोध के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने इन्हें बी.ए. की उपाधि भी दी।न केवल भारत बल्कि समूचे विश्व का दुर्भाग्य था कि गणित का ये साधक मात्र तैंतीस वर्ष की आयु में 26 अप्रैल 1920 ई. में तपेदिक के कारण परलोक सिधार गया।

 यह आश्चर्य की ही बात है कि किसी भी तरह की औपचारिक शिक्षा न लेने के बावजूद उन्होंने उच्च गणित के क्षेत्र में ऐसी विलक्षण खोजें कीं जिससे इस क्षेत्र में उनका नाम हमेशा के लिए अमर हो गया। इन्होंने खुद से गणित सीखा और अपने जीवनभर में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं। इन्होंने गणित के सहज ज्ञान और बीजगणित प्रकलन की अद्वितीय प्रतिभा के बल पर बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले जिनसे प्रेरित शोध आज तक हो रहा है।यद्यपि इनकी कुछ खोजों को गणित की मुख्यधारा में अब तक नहीं अपनाया गया है। इनके द्वारा प्रतिपादित लैंडो रामानुजन कांस्टेट, रामानुजन थीटा फंक्शन, रामानुजन प्राइम, रामानुजन योग आदि ऐसे कार्य हैं जो आनेवाले गणितज्ञ के लिए पथ-प्रदर्शक है।हाल में इनके सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया है। इनके कार्य से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में हो रहे काम के लिये और इस महान गणितज्ञ को सम्मानित करने के लिए रामानुजन जर्नल की स्थापना भी की गई है। मनमोहन सिंह सरकार ने 2012 ई. में ऐसे महान गणितज्ञ के जन्मदिन के अवसर पर 22 दिसंबर को 'राष्ट्रीय गणित दिवस' मनाने का फैसला किया। ऐसे महान विभूति को उनके जन्मदिन पर  सादर नमन..

(लेखक - डॉ. आलोक रंजन पांडेय)
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य के शिक्षक हैं)

Comments

  1. अति सुंदर जानकारी
    शतशतनमन

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